केकड़ी 25 फरवरी(पब्लिक बोलेगी न्यूज़ नेटवर्क)
सकल दिगम्बर जैन समाज द्वारा बोहरा काॅलोनी पाण्डुक शिला स्थित ऋषभदेव जिनालय पर रविवार दोपहर आचार्य श्री विद्यासागर महाराज “एक संत अरिहंत सा” विनयांजलि सभा का आयोजन किया गया।
ज्ञातव्य रहे छत्तीसगढ़ के राजनांदगाव जिले के डोंगरगढ़ में विश्व प्रसिद्ध निष्काम साधक महाश्रमण, संत शिरोमणि जैन मुनि आचार्य श्री विद्यासागर महाराज की 18 फरवरी रात ढाई बजे समाधि हुई थी। आचार्य श्री संध सहित डोंगरगढ़ के चंद्रगिरी में विराजित थे कई दिनों की सल्लेखना साधना के साथ निरंतर तीन दिन तक उपवास रखने के बाद उन्होंने अपना नश्वर शरीर त्याग दिया था।
भारत सहित विश्व का सकल जैन समाज विश्व वंदनीय,सबके ह्रदय सम्राट परम पूज्य आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज के उपकारों का गुणानुवाद करने के लिए सामूहिक रूप से एक साथ रविवार को एक अंतर्राष्ट्रीय विनयांजलि सभा ” एक संत अरिहंत सा ” आयोजित कर रहा है।
दिगम्बर जैन समाज के प्रवक्ता नरेश जैन ने बताया कि इसी संदर्भ में ऋषभदेव जिनालय में दोपहर को आयोजित विनयांजलि सभा में कई वक्ताओं ने विचार व्यक्त करते हुए आचार्य श्री के प्रति आत्मीयता के भावों के साथ विनयपूर्वक कृतयांजलि प्रस्तुत की। उन्होंने आयोजित सभा को संबोधित करते हुए कहा कि विश्वधरा की महाविभूति,कठोर आत्म साधक, आदर्श नि:स्पृहीसंत, करूणा की मूर्ति, संवेदनाओं के संत,श्रमण संस्कृति के अद्भुत गौरव,नीलगगन के दैदीप्यमान सूर्य,36 मूल गुणों के धारी आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज जिन्होंने छत्तीसगढ़ की धरा पर अपने सारगर्भित जीवन से मृत्यु को महोत्सव बनाने का उत्कृष्ट संदेश देते हुए,रत्नत्रय का पालन करते हुए,यम सल्लेखना समतापूर्वक धारण की और तीन दिनों के उपवास उपरांत अरिहंत सिद्व भगवान का स्मरण करते हुए “ओम” शब्द के उच्चारण के साथ देह का त्याग कर दिया।
आचार्य श्री ने समस्त मानव समाज के लिए धर्म प्रभावना की। इनके व्यक्तित्व में समता, सहिष्णुता,सहजता,सरलता की अमूल्य शिक्षा नि:सृत होती है। छोटी आयु में संध का विराट संवर्द्धन,पालन,शिक्षण का सामयिक कौशल स्तुति योग्य है, स्तुत्य है। वे अध्यात्म के वात्सल्यी रत्नाकर थे,युवा शक्ति के प्रेरक श्रमण संस्कृति के इस अविस्मरणीय अवदान के प्रति सम्पूर्ण समाज सदैव श्रद्धानवत् रहेगी। आचार्य श्री आत्मकल्याण के साथ – साथ परकल्याण में पूर्णतया लगे रहते थे, प्राणी मात्र के हित की बात सोचते थे।
आचार्य श्री की वाणी की मधुरता,आंखों में नम्रता,व्यवहार में सहजता,चेहरे पर गम्भीरता, सभी विवेक पूर्ण कार्य,चतुर्विध संध के नायक, अनुशासन सहित इनका राष्ट्र को योगदान हमेशा इतिहास पटल पर विशेष अंकित रहेगा। राष्ट्र हित में “इंडिया नहीं भारत बोलो” का नारा भी बुलंद किया। उन्होंने भारत की शिक्षा के स्तर को उत्कृष्ट एवं संस्कारित करने के लिए पांच प्रतिभास्थली ज्ञानोदय विद्यापीठ की स्थापना की तो देश को आत्मनिर्भर और अहिंसक रोजगार की दिशा में पहल करने के लिए चल चरखा के माध्यम से कई हथकरघा का अपना असीम आशीर्वाद भी दिया। सैकड़ो गौशालाएं आचार्य श्री के आशीर्वाद से संचालित हो रही है। उन्होंने समाज सुधार के लिए तिहाड़ जेल में भी जैन धर्म की अलख जगाते हुए ब्रह्मचारिणी दीदियों व ब्रह्मचारी भैयायों के माध्यम से हथकरघा संचालित कर कैदियों को भी रोजगार का साधन उपलब्ध कराकर अपना आशीष प्रदान किया। आचार्य श्री द्वारा रचित “मूकमाटी” जैसा अलौकिक महाकाव्य जिस पर ढाई सौ लोगों से भी अधिक लोगों ने पीएचडी की और पूरे विश्व को अहिंसक और आत्मज्ञान के लिए प्रेरित होने का आशीष प्रदान किया। आज शारीरिक रूप से वह हमारे साथ नहीं है लेकिन उनके विचारों की उत्कृष्ट श्रृंखलाओं में से किसी एक का भी अनुसरण हमारे जीवन को मोक्ष मार्ग की ओर प्रशस्त करने के लिए प्रभावी होगा। जीवन का निर्वाह के साथ जीवन के निर्वाण व आत्मा का हित करने के लिए उत्तम समाधि की जाती है।
आचार्य श्री जी ने अपनी सल्लेखना के पूर्व अपने आचार्य पद का त्याग कर निर्यापक मुनि योग सागर जी महाराज एवं अन्य मुनियों के समक्ष आगामी आचार्य पद हेतु अपने द्वारा दीक्षित प्रथम शिष्य निर्यापक मुनि समय सागर जी महाराज को योग्य मानते हुए आचार्य पद देने का अंतिम आदेश दिया।
विनयांजलि सभा में संजय कटारिया,प्रो. कैलाशचंद जैन,चन्द्रकला जैन,कैलाशचंद सोनी,मंजू बज,कैलाशचंद पाटनी,सुनिता पाटनी,महावीर टोंग्या,सोनल सोनी,अर्तिका कटारिया और अनाया बज ने संबोधित कर अपने भाव रखें।सभा के अंत में अध्यक्ष भंवर लाल बज ने आभार प्रकट किया।
गुरुवर के प्रति कृतज्ञता एवं विनयांजलि सभा में दिगम्बर जैन समाज के संरक्षक कैलाश चंद सोनी,अध्यक्ष भंवरलाल बज, कोषाध्यक्ष नरेन्द्र गदिया,शहर के सभी दिगम्बर जैन मंदिरों के व्यवस्थापकों सहित समाज के सैकड़ों अनुयायी महिला- पुरूष जैन-जैनेत्तर शहरवासी मौजूद रहे। सभा के दौरान “समाधि मृत्यु महोत्सव पाठ” एवं “विघाघर से विघासागर” लधु फिल्म का प्रसारण किया गया।
सभा में भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से यह आग्रह किया गया कि आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज को भारत रत्न की उपाधि से विभूषित किया जाए।
सभा का संचालन पदमचंद कासलीवाल ने किया।
Author: Public bolegi News Network
PK Rathi-Journalist