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जीवन में समता, निर्मलता आये इसके लिए हृदय के कपाट खोलकर संतोष धारण कर आत्मा की आराधना करनी होगी-मुनि सुश्रुत सागर

केकड़ी 10 अक्टूबर(पब्लिक बोलेगी न्यूज़ नेटवर्क) देवगांव गेट के पास विद्यासागर मार्ग पर स्थित चंद्रप्रभु चैत्यालय मे वर्षायोग के लिए विराजित मुनिराज सुश्रुत सागर महाराज ने आयोजित धर्मसभा को संबोधित करते हुए कहा कि मुंह में नमक की डली रखकर मिश्री का पानी पियेंगे तो वो भी मुंह में खारा ही स्वाद देगा। मिश्री का उसी रूप मीठा स्वाद महसूस नहीं होगा, उसी प्रकार जब तक जीवन में नमक की डली रूपी संकल्प विकल्प रहेंगे तब तक मिश्री रूपी शुद्ध आत्मतत्व के चिंतन का आनन्द नहीं आयेगा।कमरे के अंदर सूर्य का प्रकाश आये इसके लिए कमरे के दरवाजे खुले होना आवश्यक है। जीवन में समता, निर्मलता आये इसके लिए हृदय के कपाट खोलकर संतोष धारण कर आत्मा की आराधना में बैठना होगा तब ही चेतना जागृत होती है। हमने राग- मोह को जीवन में मधुरता देने वाला मान रखा है इसलिए जिनेन्द्र भगवान की वाणी को पूरी श्रद्धा से श्रवण नहीं कर पाते हैं। आत्मा का स्वरूप तो अर्हंत भगवान के समान शांति से बैठना है। इसमें ही परम शांति है।
मुनिराज ने कहा कि हमें अपने फालतू के विचारों को, अनावश्यक सोच को,अधिक आकांक्षाओं को विराम दे देना चाहिए तभी मन मस्तिष्क में शांति मिल सकती है।सुख – शांति तो अपने भीतर की विषय कषायो के हटाने में है। त्याग,साधना,संयम में है और हम बाहर की वस्तुओं में सुख शांति की खोज में भटक रहे हैं। मुनिराज ने भजन ” अचरज है जल में रहकर मछली को प्यास है, मुझे सुन सुन आवे हांसी पानी में मीन प्यासी ” के माध्यम से समझाया कि जिस तरह मछली पानी में रहकर भी अपनी प्यास नहीं बुझा पाती है प्यासी रह जाती है, उसी प्रकार से शांति हमारी आत्मा में – भावों में ही है और हम शांति से वंचित रह जाते हैं। दृष्टि को बदलना होगा। दृष्टि का फैर है, ” दृष्टि के बदलने से सृष्टि बदल जाती है और सोच को बदलने से सितारे बदल जाते हैं।” अशुभ भावों – परिणामों को बदलने से सारे भाव शुभ रूप में बदल जाते हैं।
मुनिराज ने कहा जीवन में कि ज्ञान,चारित्र,तप व गुणों की कीमत होती है। श्रद्धा से पूजा होती है। श्रद्धा और श्रद्धेय का संबंध होता है। गुणों के कारण स्थापना नय की अपेक्षा एवं अपनी सम्यक श्रद्धा,भावना के कारण हम पत्थर की मूर्ति को भगवान मानते हैं।जिस प्रकार तिल में तेल है, दूध में धृत है उसी प्रकार,शरीर में – देह में आत्मा है।मैं तो संकल्प विकल्पों, पर पदार्थों से रहित अमूर्तिक ज्ञान स्वभावी शुद्ध चैतन्य भगवान आत्मा हूं । मैं परमशांत हूं, शुद्ध हूं बुद्ध हूं, आकाश के समान अत्यंत निराकार हूं निर्विकारमय हूं,राग द्वेष से रहित हूं,मैं सिद्ध भगवान के समान हूं। मैं ज्ञायक स्वरूप हूं मैं मात्र जानने देखने वाला हूं संसार का सारा परिणमन अपने आप ही हो रहा है। मैं तो मात्र ज्ञाता दृष्टा ही हूं।
दिगम्बर जैन समाज एवं वर्षायोग समिति के प्रवक्ता नरेश जैन ने बताया कि मुनि महाराज ‍के प्रवचन से पहले आचार्य विधासागर महाराज एवं आचार्य सुनील सागर महाराज के चित्र अनावरण,दीप प्रज्ज्वलन एवं मुनि सुश्रुत सागर महाराज के पाद प्रक्षालन करने का सौभाग्य सुनील कुमार संयम कुमार छाबड़ा परिवार को मिला।

Public bolegi News Network
Author: Public bolegi News Network

PK Rathi-Journalist

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