केकड़ी30मई(पब्लिक बोलेगी न्यूज़ नेटवर्क)। दिगम्बर जैन मुनि आदित्यसागरजी महाराज ने गुरुवार को सुबह दिगम्बर जैन चैत्यालय भवन में ग्रीष्मकालीन प्रवास के अंतर्गत धर्मसभा में प्रवचन करते हुए कहा कि जीव अगर चाहे तो अपनी भावनाओं से भवसागर पार कर जन्म-मृत्यु के जाल से मुक्त भी हो सकता है और भवों के भंवर में बार-बार फंस भी सकता है। राग-द्वेष प्राणी को संसार में भटकाते हैं। राग-द्वेष आदि अट्ठारह दोषों को जीतने से प्राणी को केवलज्ञान प्रकट होता है, ये ज्ञान ही स्वच्छ है, सम्यक है।
उन्होंने कहा कि पानी का कोई रंग नहीं होता, उसे जिस पात्र में रखा जाए उसके अनुसार रंग दिखाई देता है। इसी प्रकार जीने का तरीका जैसा होगा, वैसा ही जीवन का रंग दिखाई देगा। जीवन को शांति से चखने पर मिठास और उग्रता से चखने पर कड़वाहट का अनुभव होगा। हमारे भीतर उत्पन्न विचार ही आत्मा के उत्थान और पतन का कारण बनते हैं।
उन्होनें कहा कि वीतराग का अर्थ है, राग और द्वेष से परे होना। दुनिया में जितने भी संघर्ष और संताप होते हैं, उसका मूल है राग और द्वेष। ममत्व की भावना हमें स्वार्थी बना देती है। राग के कारण हमारी विचारधारा ‘मैं’ और ‘मेरा’ इन दो शब्दों से आगे बढ़ नहीं पाती। उसी प्रकार द्वेष भी व्यक्ति को शांति से जीने नहीं देता। ‘राग’ खुद की सुरक्षा की चिंता में लगा रहता है और ‘द्वेष’ हमेशा दूसरों को हानि पंहुचाने का षडयंत्र बनाता रहता है।
उन्होंने कहा कि व्यक्ति को व्यापार आदि सांसारिक कार्यों में राग-द्वेष नहीं करना चाहिए। व्यक्ति को राग-द्वेष करते-करते बहुत जन्म बीत चुके है और वह नाना प्रकार के दुःख झेलता हुआ संसार में बार-बार भटक रहा है। मनुष्य पर्याय में जीव को सम्यकज्ञान से वस्तु स्वरूप के सत्य का भान हो सकता है। अगर अभी भी राग-द्वेष आदि कषायों से बचने का उपाय व अभ्यास नहीं किया गया तो वर्तमान पर्याय भी यूं ही व्यर्थ बीत जाएगी।
धर्मसभा के प्रारंभ में भंवरलाल अरिहंत कुमार बज परिवार ने मुनिसंघ के पाद प्रक्षालन किए और उन्हें शास्त्र भेंट किये तथा आचार्य विशुद्धसागरजी महाराज के चित्र का अनावरण कर उसके सम्मुख दीप प्रज्वलन किया। सभा का संचालन महावीर टोंग्या ने किया।
Author: Public bolegi News Network
PK Rathi-Journalist