केकड़ी 12 अक्टूबर(पब्लिक बोलेगी न्यूज़ नेटवर्क)देवगांव गेट के पास विद्यासागर मार्ग पर स्थित चंद्रप्रभु चैत्यालय मे वर्षायोग के लिए विराजित मुनिराज सुश्रुत सागर महाराज ने आयोजित धर्मसभा को संबोधित करते हुए कहा कि सात तत्वों व छह द्रव्यों में जीव ही महत्वपूर्ण है। जीव की सत्ता हमेशा रहती है। जो जीव शुद्ध द्रव्य दृष्टि आत्मतत्व का चिंतन करता है वह संसार के दुःखों से छुटकारा पाकर मोक्ष को प्राप्त करता है। जब तक हमारी दृष्टि पुण्य प्राप्त करने की ही रहेगी तब तक हम संसार में ही भटकते रहेंगे। संसार में भटकने से छुटकारा पाने के लिए पुण्य को भी छोड़ना पड़ेगा। शुद्ध सम्पूर्ण कर्म मल से रहित चैतन्य भगवान आत्मा के लिए मुक्ति रूपी लक्ष्मी प्राप्त होगी। अशुभोपयोग से बचकर शुभोपयोग में जाना चाहिए और शुभोपयोग को भी छोड़कर शुद्धोपयोग में रमना चाहिए।हमेशा हमेशा के लिए आत्मा की शुद्ध अवस्था में लीन हो जाना चाहिए।
मुनिराज ने कहा कि मूर्ति बनाने वाले मूर्तिकार, शिल्पकार अपने ज्ञान और अनुभव से पत्थर में मूर्ति देखता है और वह पत्थर के चारों तरफ के अनावश्यक पत्थर को छैनी- हथौड़े से ध्यान पूर्वक हटाकर पूर्णतया आकर्षक मूर्ति को उभार देता है। उसी प्रकार मोक्ष मार्ग में बढ़ने वाला साधक – संयमी आत्मा के विकारी
परिणामों को,भेद विज्ञान के सद्ज्ञान से तप द्वारा आठों कर्मो को नाश कर शुद्ध चैतन्य आत्मा को प्रकटाता है। मुक्ति की प्राप्ति हेतु पांचों इंद्रियों के विषयों एवं मिथ्यात्व मल को धोने के लिए सम्यकज्ञान की उपलब्धि होना आवश्यक है। आत्मा के आंकिचन्य स्वभाव को प्राप्त करने के लिए अपनी बुद्धि,प्रतिभा,गुणों को जागृत करना होगा, चौबीस तरह के परिग्रहो, राग द्वेष को छोड़ना होगा, सभी तरह के विकल्पों को छोड़ने पर ही विशुद्ध निर्विकल्प अवस्था प्राप्त होती है। यही अवस्था शाश्वत सुख को देने वाली है।
मुनिराज प्रवचन के पश्चात् ध्यान करवा रहे हैं। ध्यान करवाते समय उन्होंने बताया कि मैं विषय सुखों से विरक्त चैतन्य आत्मा हूं, मुझे अपनी शुद्धात्मा का बोध हो चुका है इसलिए मैं बुद्ध हूं,मैं कर्म कालिमा से रहित हूं अत्यंत निरंजन हूं, शुद्ध – बुद्ध निरंजन स्वभाव को जानने वाला मैं चैतन्य आत्मा हूं,मैं अत्यंत शांत शुद्ध चैतन्य भगवान आत्मा हूं, मै मन वचन काय के व्यापार से रहित हूं, इनकी प्रवृत्ति से भी रहित हूं,देहादिक के विचारों से मै उन्मुक्त हूं, मेरा किसी भी प्राणी – जीव के साथ राग- द्वेष नहीं है,मैं अत्यंत ही निर्मल परिणामों वाला समता का धारी हूं, अर्हंत भगवान के समान मैं परम वीतरागी स्वभावी हूं। संसार में सभी जीवों का मंगल होवे किसी भी जीव का अमंगल नहीं होवे सभी को ऐसे ही पवित्र विचारों को अपने जीवन में उतारना चाहिए।
दिगम्बर जैन समाज एवं वर्षायोग समिति के प्रवक्ता नरेश जैन ने बताया कि मुनि महाराज के प्रवचन से पहले आचार्य विधासागर महाराज एवं आचार्य सुनील सागर महाराज के चित्र अनावरण,दीप प्रज्ज्वलन एवं मुनि सुश्रुत सागर महाराज के पाद प्रक्षालन करने का सौभाग्य मनोज कुमार देवेन्द्र कुमार अर्चित कुमार दर्शन कुमार सोनी परिवार को मिला। मंगलाचरण निकिता जैन ने किया।
Author: Public bolegi News Network
PK Rathi-Journalist